काव्यांजलि तेज (Kāvyāṃjali Teja)

काव्यांजलि तेज (Kāvyāṃjali Teja)

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धीरे- धीरे शब्द जब तारुण्य वय को प्राप्त होते हैं तो उनमें निराशा में आशा, संघर्ष में परिणाम, परिश्रम में उत्साह, लक्ष्य में समर्पण, दुर्गमता में सुगमता, असहजता में सहजता, प्रतिकूलता में अनुकूलता आदि देव दुर्लभ सद्गुण सहज ही लौह कवचयुक्त उदात्त भाव जीवन में प्रवेश करते हैं और पथ पर चलने वाले हर पथिक का स्वयं मूक पाषाण बनकर संकटों में भी मुस्कराते हुए दिशादर्शन कराते हैं और उसे या उससे जले दीपों में नवोत्साह का प्रखर नवोन्मेष भरतें हैं। ऐसा तेज रूपी प्रखर दिवाकर सम्पूर्ण अंधकार को निस्तेज कर तेज को फैलाता है। काव्यांजलि तेज इसी प्रखर दिनकर सा प्रवाह रूप धारण कर कतर्व्य पथ पर निरन्तर गतिमान होने की, सदागतिमान रहने की भी निश्छल प्रेरणा देता है और निराशा के गर्त में आकण्ठ डूबे बांधवों की स्वयं पतवार पकड़कर भंवर से पार कराता है यही इसकी भावांजलि हैं।
EAN 9789353248659
ISBN 9353248655
Binding Ebook
Publisher GenNext Publication
Publication date June 30, 2019
Pages 143
Language Hindi
Country India
Authors सिह, जगराम (Jagarama Simha)